वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है
उसके बड़े-बड़े कान थे, इसकी लम्बी सी जीभ है
इन अजीब शामों के पीछे ज़रूर कोई तरतीब है
हरजाई है कोई, या कोई हबीब है?
deep state है शायद, hacker या कोई dweeb है?
अनेकों मेरे वहम हैं, उतने ही जवाब हैं
सब मंडरा रहे दूर दूर, नहीं एक भी करीब है
डर के सकुंचाते घेरे ही हैं अब मेरे नसीब में
सब के हैं सहारे, बस मेरा ना कोई रक़ीब है