रू-ब -रू-ए-आइना कभी मैं, कभी खुद ही अक्श अपना
कभी ख्वाब-नोश मैं, कभी खुद ही एक सपना
कभी हूँ मैं तमाशा, और कभी मैं तमाशाई
कभी बाज़ीचा-ए-अतफाल मैं, कभी नाज़रीनों में मैं
कभी मैं इशारा, और कभी निशाना
कभी भीड़ से अलग मैं, कभी हमनफ़स-ए-ज़माना
कभी जा रहा हूँ वहाँ जहां ले चले फ़साना
और कभी लिक्खुं इक बेइन्तिहाँ तराना
कभी गर्द-ए-दश्त हूँ मैं, कभी हूँ मैं आशियाना
कभी हूँ मैं गर्दिश, और कभी मैं ठिकाना
कभी लबलबाता सागर, तो कभी खाली पड़ा पैमाना