अभिव्यक्ति मर गयी है अगर
तो सत्य भी मर ही जाएगा
चल तो रहा था संसार पहले भी
आगे भी चल ही जाएगा
अभिव्यक्ति-अधिकार को कब्र में छोड़ आये हैं
कब्र को हम खुला ही छोड़ आये हैं
अवहेलना अब उसमें मिट्टी उंडेल रही है
काल भी सतत धुल डाल रहा है
कुछ दिनों में कब्र भर ही जायेगी
हम कभी उन्मुक्त थे भूल जायेंगे
सत्य की परिभाषा भी भूल जायेंगे
स्वर सत्य के भी लुप्त हो जायेंगे
अंतरात्मा की कचोट कम हो जाएगी
जो मर गए हैं ना उनकी याद आएगी
ना ही अपराध भावना मन को सताएगी